भूमिका-
- महासागरीय जल हमेशा गति करते रहती है।
- महासागरीय जल की विस्तीर्ण सतह वायु के धीमी-धीमी थपेड़ों से एवं दूसरे विशेष कारणों से हमेशा स्पन्दित होती रहती है।
- महासागरीय जल में गति और मात्रा अलग-अलग स्थानों पर भिन्न हो सकती है।
- तरंगे, धाराएं, ज्वार-भाटा सागरीय जल की गति के विभिन्न प्रकार है। जो अलग-अलग शक्तियों का परिणाम है।
लहरें-
- महासागरीय जल की सतह में हमेशा लहरें उठती या गिरती रहती है।
- लहरों के द्वारा सागरीय जल मात्रा ऊपर-नीचे या आगे बढ़ता रहता है।
- लहरों की उत्पत्ति वायु, ज्वार व भूकम्प के प्रभाव से होता है।
- रिचर्ड के अनुसार, "लहरें महासागर की तरल सतह का विक्षोभ होती है।"
- लहरें महासागर में सभी और व्यापक रूप से पाए जाने वाली गति है।
- लहरों की उत्पत्ति बिना वायु के नहीं हो सकती है।
- ज्यादातर सागरीय लहरों में जल का स्थान बदलता है यानी आगे पीछे होता है लेकिन इसके वेग का स्थानांतरण नहीं होता है।
लहरों की संरचना-
- लहर में जल का ऊपर उठना तथा नीचे गिरना जारी रहता है।
- इसके उठने को शिखर व अशीर्ष कहते है।
- इसके गिराव के को द्रोणिका या गर्त कहते है।
- एक शिखर से दूसरे शिखर तथा एक गर्त से दूसरे गर्त को लहर को लंबाई कहते है।
- गर्त के तल से शीर्ष बिंदु के बीच लंबवत दूरी को लहर की ऊंचाई कहते है।
- दो शीर्ष बिंदु को एक निश्चित बिंदु से गुजरने में जो समय लगता है उसे लहर की अवधि कहते है।
- लहर के वेग तथा अवधि के बीच प्रत्यक्ष संबंध वायु की गति का होता है।
- वायु तथा महासागरीय जल के घर्षण से उर्मिकायें (Ripples) उत्पन्न होती है।
- क्वेनेन के अनुसार, लंबी लहरों के लिए कम से कम 1,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत वातोर्मी जरूरी है।
- प्रयोगशाला में किए गए प्रयोग के अनुसार यदि 1,500 किलोमीटर की दूरी तक विस्तृत फेच पर हवा का प्रवाह 105 किमी प्रति घंटे के हिसाब से 50 घंटे तक है तो 20 मीटर ऊंची लहर का सृजन हो सकता है।
लहरों की संरचना |
लहरों की गति-
- सामान्यतः सागरीय तरंगे तट की ओर अग्रसर होती है।
- जैसे जैसे तरंगे तट की ओर आगे बढ़ती है वैसे वैसे जल की गहराई कम होती जाती है।
- इस कारण लहरों की ऊंचाई अधिक तथा लंबाई कम होती है।
- तरंग शीर्ष की ऊंचाई अधिक होने से वह टूट कर गिरता है और आगे बढ़ जाता है।
- इस टूटे हुए लहर को सर्फ, ब्रेकर, स्वाश कहते है।
- इसमें जल पीछे की ओर लौटता है।
लहरों की गति या वेग निम्न दो प्रकारों पर निर्भर करती है-
1. जल की गहराई
2. लहर की लंबाई
टुक्कर ने तरंग की लंबाई ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र बताया है-
तरंग की लंबाई ज्ञात करने का सूत्र |
- यदि लहर की लंबाई अधिक है, और जल की गहराई कम है तब उसकी गति पर नियंत्रण जल की गहराई का होता है।
- यदि लहर की कम है और जल की गहराई अधिक है तो लहर की गति पर नियंत्रण लहर की लंबाई का होता है।
- जब लहर की लंबाई और गहराई समान है तो उसकी गति पर नियंत्रण दोनो का होता है।
- तट से दूर लहरों लहरों की गति पर नियंत्रण लहर की लंबाई तथा तट के निकट सागर की गहराई का पड़ता है।
- यही कारण है कि तट के निकट वायु की दिशा चाहे जो हो लेकिन लहरों की गति तट के समांतर ही होती है।
- लहरों की गति तट के बनावट को भी प्रभावित करती है।
लहरों की गति |
सागरीय तरंगों के प्रकार-
1. अनुप्रस्थ तरंगें-
- इस प्रकार की तरंगों के कण ऊपर नीचे होते रहते है।
- तरंग के कण वृत्ताकार रूप में गतिशील होते है।
- अनुप्रस्थ तरंगों की आकृति ज्यादातर चक्रीय होती है।
- इसका शीर्ष नुकीला तथा गर्त या द्रोणी हल्की गोल होती है।
अनुप्रस्थ तरंगें |
2. अनुदैर्ध्य तरंग-
- इस तरह के तरंगों में कणों का विस्थापन एक ही सीध में होता है।
- जल एक ही दिशा में गतिशील दिखाई देती है।
- लेकिन वह वास्तव में गतिशील नहीं होता है।
- सतह के जल कण की कक्षा का व्यास लहर की ऊंचाई के बराबर होता है।
- जल के बीच का सतही व्यास क्रमशः घटकर लहर की लंबाई के 1/9 भाग के बराबर होता है।
अनुदैर्ध्य तरंग |
तरंग संबंधी विभिन्नताएं-
क्षेत्र | पवन प्रदेश | पवन की गति सेकंड/मीटर | तरंग की लंबाई (मीटर) | तरंग की अवधि (सेकंड) |
---|---|---|---|---|
अटलांटिक महासागर | व्यापारिक | 1.2 | 65 | 5.8 |
हिंद महासागर | व्यापारिक | 12.6 | 96 | 7.6 |
दक्षिण अटलांटिक | पछुआ | 14.0 | 133 | 9.5 |
हिंद महासागर | पछुआ | 15.0 | 114 | 7.6 |
चीन सागर | टाइफून | 11.4 | 79 | 6.9 |
प्रशांत महासागर | मानसून | 12.4 | 102 | 8.2 |