मानसून का सामान्य अर्थ:
- मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य "मौसमी पवनें" है।
- इस शब्द का सबसे पहले प्रयोग अरब के नाविकों ने लगभग 6वीं शताब्दी से पहले "मौसमी पवनों" के लिए करते थे।
- यह "मौसमी पवनें" 6 माह दक्षिणी पश्चिम तथा 6 माह उत्तर पूर्व की ओर चला करती थीं।
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई मानसून की परिभाषा:
मानसूनी पवनें बड़े पैमाने पर जल एवं थल समीर है।
मानसून जल एवं थल समीर का वृहद रूप है, तथा मानसून की वार्षिक अवधि को तुलना जल एवं थल समीरों की दैनिक अवधि से की जाती है।
मानसून प्रत्यावर्ती तापीय पवनों का सामयिक रूप है जो वायुमंडल की निचली परत को प्रभावित करती है।
भारत में ऋतुओं की अवधि:
ऋतुएं |
अवधि |
बसंत ऋतु |
मार्च - अप्रैल |
ग्रीष्म ऋतु |
मई - जून |
वर्षा ऋतु |
जुलाई - अगस्त |
शरद ऋतु |
सितम्बर - अक्टूबर |
हेमंत ऋतु |
नवम्बर - दिसम्बर |
शिशिर ऋतु |
जनवरी - फरवरी |
मानसून की उत्पत्ति का सिद्धांत:
- मानसून का अध्ययन एक जटिल कार्य है।
- मानसून की उत्पत्ति के संबंध में किसी भी तरह की ठोस जानकारी अभी तक उपलब्ध नही हो पायी है।
- इसकी उत्पत्ति के कारणों की खोज लगातार जारी है।
- लेकिन इसकी उत्पत्ति के संबध में जो सिद्धांत अभी तक विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गई वह निम्न प्रकार से है-
- प्राचीन सिद्धांत:
- आधुनिक सिद्धांत:
- फ्लॉन का गतिक सिद्धांत
- जेट स्ट्रीम सिद्धांत
- तिब्बत का पठार और पुरवा हवाएं
- एल नीनो और ला नीना
तापीय सिद्धांत:
- तापीय सिद्धांत का प्रतिपादन 1686 ई. में एडमंड हैली द्वारा किया गया था।
- इस सिद्धांत के अनुसार मानसून की उत्पत्ति स्थल एवं थल भाग के तापमान में अंतर के कारण कारण होता है।
- इसे सरल रूप में जल और थल समीर के रूप में समझा जा सकता है।
- ग्रीष्मकाल में थलीय भाग जल की अपेक्षा अधिक गर्म और हवाएं शुष्क होती है, जिससे स्थल भाग में निम्न वायुदाब की स्थिति निर्मित होती और सागरीय भाग में उच्च वायुदाब होता है।
- अतः पवनें उच्च दाब से निम्न दाब की ओर चला करती है। और स्थल भाग में वर्षा होने लगती है।
- इसे नीचे दिए चित्र में समझा जा सकता है-
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ग्रीष्मकालीन स्थिति (जल समीर) |
- इसी तरह शीतकाल में यह संकल्पना ग्रीष्मकाल के विपरित हो जाती है।
- शीतकाल में स्थल भाग अपेक्षाकृत अधिक ठंडी होती है और जल गर्म होता है जिससे वायुदाब स्थल भाग उच्च और जल में निम्न दाब होता है।
- इससे स्पष्ट हो जाता है कि हवाएं स्थल भाग से जलीय भाग अर्थात् सागरों की ओर चला करती है।
- इस व्याख्या को नीचे चित्रित किया गया है-
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शीतकालीन स्थिति (थल समीर) |
- ग्रीष्म ऋतु के समय सूर्य की किरणे कर्क रेखा पर लम्बवत या सीधी पड़ती है, क्योंकि भारत के लगभग मध्य भाग से कर्क रेखा गुजराती है इसलिए इस समय यहां तापमान काफी उच्च रहता है और हवाएं शुष्क चलती है।
- वायुदाब निम्न होती है, हिंद महासागर इस समय शीतल होती और दक्षिण पूर्वी व्यापारिक हवाएं अधिक आर्द्रता लिए स्थल भाग यानी भारत की ओर चला करती है जिससे वर्षा शुरू हो जाती है।
- मानसूनी वर्षा सबसे पहले केरल राज्य में 1-5 जून के आसपास होती है, और धीरे-धीरे पुरे भारत बारिश होने लगती है।
- इसे नीचे दिए मानचित्र से ठीक तरह से समझा जा सकता है-
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ग्रीष्मकालीन मानसून मानचित्र |
- मानचित्र में स्पष्ट दर्शाया गया है कि किस तरह से दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवनें विषुवत रेखा को पर कर उत्तर की ओर आगे बढ़ रही है।
- शीत ऋतु में सूर्य की किरणे मकर रेखा पर सीधी पड़ती है। हिंद महासागर का जल अपेक्षाकृत अधिक गर्म होता है जिसके कारण वहां वायुदाब निम्न होता है।
- वही स्थल भाग में ठंड पड़ने के कारण हवाओं में आर्द्रता अधिक होती इसलिए उच्च दाब रहता है।
- उत्तर पूर्वी व्यापारिक हवाएं भारत के दक्षिणी की ओर धीरे-धीरे चली जाती है।
- इसी इस कालखंड में दक्षिण भारत के तमिलनाडू में बारिश होती है।
- कुछ विद्वान इसे लौटता हुआ मानसून की संज्ञा देते है।
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शीतकालीन मानसून मानचित्र |
- मानचित्र के माध्यम से इसे अच्छे से समझा जा सकता है, कि उत्तर पूर्वी व्यापारिक हवाएं विषुवत रेखा या ऐसा भी कह सकते है कि निम्न दाब की ओर आगे बढ़ रहीं हैं।
तापीय सिद्धांत मानसून की उत्पत्ति को समझने की एक महत्वपूर्ण संकल्पना है। यह सिद्धांत बहुत लंबे समय तक मान्य थी, लेकिन इस सिद्धांत में केवल जल और थल की तापीय भिन्नता को केंद्र में रखकर मानसून की उत्पत्ति को समझा गया था परंतु वायुमंडल की दशाओं के बारे में इसमें व्याख्या नही की गई थी इसलिए यह मानसून की जटिलताओं को समझने में असमर्थ रहा और धीरे-धीरे इसकी मान्यता कम होने लगी।
फ्लॉन का गतिक सिद्धांत:
- फ्लॉन ने एडमंड हैली के तापीय सिद्धांत का पूरी तरह से खंडन किया और मानसून की उत्पत्ति का नया सिद्धांत प्रस्तुत किया इसे गतिक सिद्धांत या विषुवत रेखीय पछुआ पवन सिद्धांत भी कहा जाता है।
- फ्लॉन ने बताया की मानसून की उत्पत्ति के लिए केवल तापीय भिन्नता उत्तरदायी नही है।
- उन्होंने विषुवत रेखीय पछुआ पवनें जो शून्य डिग्री अक्षांश पर चला करती है वह मानसून की उत्पत्ति का मंत्वपूर्ण कारण है।
- सितम्बर के समय जब सूर्य 0° अक्षांश पर होता है तो तापमान की अधिकता के कारण वहां निम्न दाब की स्थिति बनती है इसके (विषुवत रेखा) उत्तर और दक्षिण भाग में उच्च दाब वाली व्यापारिक हवाएं आकार ऊपर उठने लगती है।
- विषुवत रेखा के यानी 0° अक्षांश से 5° उत्तर और 5° दक्षिण तक एक खाली शांत क्षेत्र विकसित हो जाता है जिसे डोलड्रम कहते है इसे फ्लॉन ने अंतर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र कहा है।
- इससे और स्पष्ट रूप से समझने के लिए नीचे दिए गए चित्र को देखें-
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अंतर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र |
- मार्च महीने के बाद सूर्य की किरणों का खिसकाव उत्तरी गोलार्ध की ओर होता है और जून के आते-आते यह कर्क रेखा में सीधी चमकने लगती है।
- इसी के साथ ITCZ अर्थात् अंतर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र भी धीरे-धीरे उत्तर की खिसकता जाता है।
- ITCTZ के उत्तरी सीमा जिसे उत्तरी अंतर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (NITC) कहते है यह कर्क रेखा के आगे लगभग 25° से 30° तक चला जाता है इसका कारण यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप का उत्तर पश्चिम भाग अपेक्षाकृत अधिक गर्म हो जाता है।
- सूर्य की किरणें कर्क रेखा तक ही सीमित रहती है।
- फ्लॉन ने का मानना है कि इसी ITCZ से ही भारतीय उपमहाद्वीप में मानसूनी वर्षा होती है।
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NITC का मानचित्र द्वारा विश्लेषण |
- शीत ऋतु के समय जब सूर्य की किरणें दक्षिण गोलार्ध की ओर वापस जाना शुरू होता है तब ITCZ भी साथ में वापस होना यानी दक्षिण की ओर आगे बढ़ जाती है।
- फ्लॉन ने ITC की वापसी को मानसून का लौटना (SITCZ) बताया है जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम भाग से होकर जाती है।
- इसके जब सूर्य की किरणें विषुवत रेखा को पार कर मकर रेखा में लंबवत पड़ने लगती है तो ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी भाग में बारिश होने लगती है।
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SITC का मानचित्र द्वारा विश्लेषण |
जेट स्ट्रीम सिद्धांत:
- जेट स्ट्रीम (पछुआ जेट स्ट्रीम जो पश्चिम से पूर्व दिशा में चलती है।) के सिद्धांत के अनुसार, जब शीत ऋतु में सूर्य की स्थिति दक्षिणी गोलार्ध अर्थात् मकर रेखा पर सीधी होती है उस समय भारतीय उपमहाद्वीप में उच्च दाब होता है।
- इस उच्च दाब को और अधिक बढ़ने में जेट स्ट्रीम हवाएं जो 25° उत्तर से 35° उत्तर के मध्य चला करती है लेकिन बीच में हिमालय पर्वत श्रृंखला आ जाने से यह जेट स्ट्रीम हवाएं दो शाखाओं क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी में बंट जाती है और इसकी दक्षिणी शाखा भारत के उत्तरी भाग में उच्च दाब के निर्माण करने में मदद करती है जिससे ITCZ को दक्षिण की ओर धकेलती है और इसे ही मानसून का लौटना कहा जाता है।
- इसे नीचे दिए मानचित्र से समझा जा सकता है-
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जेट स्ट्रीम सिद्धांत का मानचित्र द्वारा विश्लेषण (शीत ऋतु) |
- ग्रीष्म ऋतु में यही जेट स्ट्रीम हवाएं (300km/h) 35° उत्तर से 45° उत्तर के मध्य से चला करती है, जिसके कारण हिमालय पर्वत श्रृंखला इसके मार्ग में नहीं आता और ये हवाएं दो भागों में विभक्त नही हो पाती है।
- इस लिए भारत के उत्तरी भाग में भीषण गर्मी के कारण हवाएं शुष्क हो जाती है निम्न दाब का निर्माण करती है इससे ITCZ और उच्च वायुदाब, आर्द्रता युक्त हवाएं विषुवत रेखा से उत्तरी अक्षांश की धीरे-धीरे आगे बढ़ती है जिससे जून के प्रथम सप्ताह में ही भारत में मानसूनी वर्षा प्रारंभ हो जाती है।
- यदि ग्रीष्म काल में जेट स्ट्रीम हवाएं 35° उत्तर से 45° उत्तर में नहीं चलती तो उत्तर भारत में निम्न दाब नही बन पाता और परिणामस्वरूप मानसूनी वर्षा भी नही हो पाती।
- जेट स्ट्रीम हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप में मानसूनी वर्षा होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- नीचे दिए गए मानचित्र से पूर्णरूपेण स्पष्ट हो जाएगा-
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जेट स्ट्रीम सिद्धांत का मानचित्र द्वारा विश्लेषण (ग्रीष्म ऋतु) |
तिब्बत का पठार और पुरवा हवाएं:
- तिब्बत का पठार भारतीय मानसून को काफी प्रभावित करता है।
- ग्रीष्म काल में यह तिब्बत का पठार उत्तर भारत की अपेक्षा 2°C से 3°C अधिक गर्म हो जाता है।
- तिब्बत के पठार का अत्याधिक गर्म होने का कारण इसके अधिक ऊंचाई एवं समतल होना है।
- गर्म होने से हवाएं ऊपर उठकर उत्तर भारत की ओर जाने लगती है और निम्न वायुदाब क्षेत्र का निर्माण करती है।
- इस कारण तिब्बत के पठार को ऊष्मा इंजन भी कहा जाता है।
- इसके बाद विषुवत रेखा के पास जो व्यापारिक हवाएं है वह उत्तरी गोलार्ध की ओर जाने लगती है और दाहनी ओर मुड़कर दक्षिण पश्चिम मानसून के रूप में वर्षा करती है।
- पुरवा जेट हवाएं (ये हवाएं पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।) तिब्बत के पठार से ऊपर उठकर दाएं ओर मुड़ जाती है।
- इसके बाद ये हवाएं 10° से 15° अक्षांश तक चली जाती है।
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मानसून पर तिब्बत एवं पुरवा प्रभाव (ग्रीष्म ऋतु) |
- शीत ऋतु में ठीक इसके विपरित प्रक्रियाएं होती है।
एल नीनो और ला नीना:
- एल नीनो और ला नीना दोनो स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ छोटा बच्चा और छोटी बच्ची होता है।
- एल नीनो एवं ला नीना नाम पेरू तट के मछुआरों ने रखा है।
- यह दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित ईक्वाडोर, चिली और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती है।
- इसका विस्तार 3° दक्षिणी अक्षांश से 18° दक्षिणी अक्षांश तक होता है।
- एल नीनो की उत्पत्ति,
- शीत ऋतु में यानी अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर, दिसम्बर में सूर्य मकर रेखा में होता है जिसके कारण उत्तरी गोलार्ध की व्यापारिक हवाएं मकर रेखा की ओर जाती है इसके साथ ही पूर्वी प्रशांत महासागर में पेरू की गर्म जलधारा और पेरू की ठंडी जलधारा एक साथ मिलने से एल नीनो की उत्पत्ति होती है।
- यह एल नीनो जलधारा गर्म होती है और धीरे-धीरे इस एल नीनो जलधारा को व्यापारिक हवाएं पश्चिम की ओर धकेलती है।
- एल नीनो फिलिपिंस और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के पास पहुंचने के बाद ये अलग शाखाओं में बंट जाती है।
- पूर्वी ऑस्ट्रेलिया की जाने वाली शाखा को पूर्वी ऑस्ट्रेलिया की गर्म जलधारा कहते है।
- जापान को ओर मुड़ने वाली जलधारा को क्योरोशियो की गर्म जलधारा कहते है।
- कुछ शाखाएं इंडोनेशिया के द्वीपीय भागों से होकर अलग अलग शाखाओं के रूप में आगे चलकर हिंद महासागर में मिल जाती है।
- भारतीय मानसून पर एल नीनो का प्रभाव,
- एल नीनो हिंद महासागर में जाकर इसको गर्म करने लगती है।
- हिंद महासागर का तापमान बढ़ा देती है जिससे वहां निम्न दाब की स्थिति निर्मित होती है।
- हवाएं ऊपर की उठने लगती है।
- इससे मानसूनी वर्षा करने वाले ITCZ के मार्ग में रुकावट होने लगती है।
- लेकिन तिब्बत का पठार और थार मरुस्थल और अधिक गर्म होने लगता है और एल नीनो के आने से आयी बाधा को दूर कर देता जिससे ITCZ ठीक तरह से भारत में प्रवेश कर जाता है। और सामान्य वर्षा होना शुरू हो जाता है।
- इसमें दो स्थितियां महत्वपूर्ण है,
- पहली- थार मरुस्थल और तिब्बत का पठार कई बार और अधिक गर्म होने लगती और जेट स्ट्रीम को भी अधिक मजबूत कर देती है।
- इस स्थिति में मानसून की बारिश सामान्य से अधिक होगी।
- दूसरी- दूसरी स्थिति इसके विपरित होती है कई बार थार मरुस्थल और तिब्बत अधिक गर्म नही हो पाता है जिससे जेट स्ट्रीम हवाएं भी कमजोर पड़ जाती है।
- इस स्थिति में मानसून की बारिश सामान्य से कम होगी।
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एल नीनो |
मानसून के आगमन की तिथियां:
मानसून के आगमन को तिथियों को निम्नांकित मानचित्र में देखा जा सकता है-
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मानसून के आगमन की तिथियां मानचित्र |
- भारत में सबसे पहले मानसूनी बारिश केरल में होती है।
- ऊपर दिए गए मानचित्र में जो तिथियां दी गई है वह सामान्य तिथियां है इसका तात्पर्य यह है कि 1 जून को मानसून सामान्यतः केरल में आ जाता है, लेकिन किसी-किसी वर्ष इससे पहले यह एक दो दिन बाद में मानसून बारिश केरल में देखने को मिलता है।
- यह तिथियां हर साल बदलते रहती है, यह परिवर्तन एक या दो दिन से ज्यादा नहीं होता है।
मानसून के निवर्तन की तिथियां
मानसून के निवर्तन की सामान्य तिथियां सभी राज्यों में अलग-अलग है, जिसे निम्न मानचित्र में देखा जा सकता है-
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मानसून के निवर्तन की तिथियां मानचित्र |
- मानसून का निवर्तन राजस्थान से प्रारंभ होता है।
- सामान्यतः 17 सितम्बर से पश्चिमी राजस्थान से दक्षिण पश्चिम मानसून लौटना शुरू हो जाता है।
- लगभग 15 अक्टूबर तक पूरे भारत से दक्षिण पश्चिम मानसून लौट जाता है।
भारतीय मानसून से जुड़े कई शोध अब भी विभिन्न भूगोलवेत्ता और मौसम वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है। आने वाले समय में इससे जुड़े कई और तथ्य सामने आएंगे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न,
मानसून की उत्पत्ति से जुड़ा प्रथम सिद्धांत कौन सा है?
मानसून की उत्पत्ति से जुड़ा प्रथम सिद्धांत तापीय सिद्धांत है, यह सिद्धांत 1686 में एडमंड हैली के द्वारा प्रतिपादित किया गया था, यह संकल्पना पूरी तरह से जल और थल में तापीय भिन्नता पर आधारित था।
मानसून के गतिक सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया?
मानसून के गतिक सिद्धांत का प्रतिपादन फ्लॉन द्वारा किया गया था, यह संकल्पना, अंतर उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) पर आधारित था।
मानसून का सबसे आधुनिक सिद्धांत कौन सा है?
मानसून का सबसे आधुनिक सिद्धांत जेट स्ट्रीम का सिद्धांत है।
भारत में मानसून से जुड़े आंकड़े कौन प्रकाशित करता है?
भारत में मानसून से जुड़े आंकड़े भारतीय मौसम विभाग द्वारा किया जाता है। यह संस्था केवल आंकड़े ही नही जारी करता वरन् यह संस्था मौसम, चक्रवात आदि की भी निगरानी करता है और अलर्ट जारी करता है।
भारत में मौसम से जुड़े पूर्वानुमान को ऑनलाइन कहां से देखा जा सकता है?
भारत मौसम विभाग की वेबसाइट https://mausam.imd.gov.in पर जाकर देख सकते है।
भारत में मानसून का आगमन सबसे पहले किस राज्य में होता है?
भारत के केरल राज्य में द. प. मानसून सबसे पहले आता है, यहां मानसूनी बारिश सामान्यतः 1 जून को प्रारंभ हो जाता है। इसके अलावा संपूर्ण भारत आमतौर पर 5 जुलाई तक फैल जाता है।
भारत में मानसून सबसे पहले किस राज्य से निवर्तन (लौटना) शुरू होता है?
भारत में सबसे पहले द. प. मानसून का निवर्तन राजस्थान से शुरू होता है, यहां सामान्यतः 17 सितम्बर को लौटना प्रारंभ हो जाता है और पूरे भारत से लगभग 15 अक्टूबर तक निवर्तन हो जाता है।