सामान्य परिचय:
- अपक्षय और अपरदन के विभिन्न साधनों से आग्नेय चट्टानों की टूट फुट से प्राप्त एक स्थान से दूसरे स्थान में जाकर जमा हो जाता है।
- यह लगतार एक परत के ऊपर दूसरी परत ऐसे करके जमा होते रहता है बाद में यह दबाव बनने से संगठित होने लगता है और अवसादी चट्टान की रचना हो जाती है।
- अवसादी चट्टान का जमाव एक क्रम में होता है सबसे पहले बड़े कण फिर उससे छोटे कण ऐसा करके जमाव होता है।
- पृथ्वी के ऊपरी धरातल का लगभग 80% भाग अवसादी चट्टानों से ढंका है।
अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण:
(A) संरचना के आधार पर:
1.बालू प्रधान चट्टानें–
- इन चट्टानों में बालू तथा बजरी अधिक मात्रा में पाया जाता है साथ ही इन चट्टानों में छोटे छोटे छिद्र भी पाए जाते है जिसके कारण जल आसानी से नीचे चला जाता है।
- पातालीय कुंए बालू प्रधान क्षेत्रों में ही पाए जाते है।
- बालुका पत्थर ऐसी चट्टानों के उदाहरण है।
2.चीका मिट्टी प्रधान चट्टानें–
- इसमें चीका मिट्टी की प्रधानता होती है। चट्टान बहुत ही बारीक मिट्टी से बने होते है।
- ये मुलायम होते है लेकिन इनमें जल प्रवेश नही कर सकती इस लिए इन चट्टानों की अधिकता वाले क्षेत्रों में पेट्रोलियम का भंडार पाया जाता है।
- शैल चट्टान इसमें मुख्य है।
3.कंग्लोमरेट–
- अवसादी चट्टान में ये सबसे कठोर चट्टानों में से एक है।
- इसका निर्माण सिलिका के ak साथ मिल जाने से होता है।
- इन चट्टानों का व्यास 4 मिलीमीटर होता है और बड़े बड़े पत्थर का व्यास 256 मिलीमीटर तक होता है।
4. कार्बन प्रधान चट्टान–
- इन चट्टानों का निर्माण वनस्पति एवम जीव जंतुओं से मिट्टी में दब जाने से होती है।
- जिसके कारण इनमे कार्बन की प्रधानता पाई जाती है।
- कोयला और ऑयल शैल इसी प्रकार के बने होते है।
5.चूना प्रधान चट्टानें–
- इन चट्टानों का निर्माण सागरो में होता है क्योंकि जल में घुले हुए चूने और चूना प्रधान जीवों के अवशेष सागरों में ही पाए जाते है।
- चूना पत्थर, डोलोमाइट इसी प्रकार का चट्टान है। इसका उपयोग ज्यादातर सीमेंट बनाने में किया जाता है।
6.रासायनिक क्रियाओं द्वारा निर्मित चट्टानें–
- खारी झीलों तथा लैगुनो में जल वाष्प बन कर उड़ जाते है, तो लवण आदर्श अवस्था में चट्टान के रूप में जम जाते है।
- इन चट्टानी का संगठन सोडियम क्लोराइड तथा कैल्शियम सल्फेट से होता है। जिप्सम चट्टानी नमक शोरा इस प्रकार के चट्टानों के उत्तम उदाहरण है।
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(B) उत्पत्ति के आधार पर अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण:
1.नदी निर्मित चट्टानें –
- पर्वतीय भागो से नदियां अपने साथ बड़े कणों वह अवसाद ले आती है।
- बड़े कणों की नदियां पर्वतीय भागो में ही छोड़ देती है लेकिन छोटे कणों को वह अपने साथ तटीय भाग में छोड़ती है।
- जैसे भारतीय उपमहाद्वीप का सिंधुगंगा का जलोढ़ मैदान।
2.हिमनदीय चट्टानें–
- हिम नदियां अपने साथ अनेक प्रकार का हिमोढ या अवसाद बहाकर लाती है तथा उसे निक्षेपित अर्थात छोड़ देती है।
- जिससे गोलश्म तथा मृतिका संगठित होकर चट्टान की रचना करती है।
3.सागरीय चट्टानें–
- सागर में नदियां अवसाद को निरंतर छोड़ती रहती है।
- सागरीय तरंगे भी अपरदन द्वारा अवसाद का जमाव करती रहती है।
- इस निक्षेपित पदार्थ के दबाव के कारण कालांतर में कठोर चट्टानें निर्मित हो जाती है, जैसे बलुआ पत्थर।
4.वायु द्वारा निर्मित चट्टानें–
- पवन द्वारा निक्षेपित अवसाद से परतदार चट्टानों की रचना होती है,जैसे लोएस।
5.सरोवरी चट्टानें–
- सरोवर तथा झीलों में निक्षेपित अवसाद से निर्मित चट्टानें है। कश्मीर की घाटी में इस प्रकार की चट्टानें पाई जाती है।
अवसादी चट्टानों की विशेषताएं
- परतों में पायी जाती है।
- रवे नही पायी जाती है।
- जीवाश्म पाया जाता है।
- कोमल चट्टानें होती है।
- चट्टानें पारग्मी होती है।
- कोमल होने से ये वलित(मोड) हो जाती है।